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karele ki kheti

फरवरी में उगाई जाने वाली सब्जियां: मुनाफा कमाने के लिए अभी बोएं खीरा और करेला

फरवरी में उगाई जाने वाली सब्जियां: मुनाफा कमाने के लिए अभी बोएं खीरा और करेला

फरवरी का महीना खेती के लिहाज से बेहद शानदार होता है। वातावरण में कई फसलों के मानक के अनुसार नमी-ठंडी-गर्मी होती है। असल में, फरवरी एक ऐसा माह है जब ठंड की विदाई होती है और गर्मी धीरे-धीरे आती है। सच पूछें तो प्रारंभिक श्रेणी की गर्मी का आगमन फरवरी के आखिरी दिनों में शुरू हो ही जाता है। 

ऐसे में, किसान भाई क्या करें। किसान भाईयों के लिए यह माह बेहद मुफीद है। इस माह अगर वह ध्यान दे दें तो अनेक नकदी फसलों का अपने खेत में लगाकर बढ़िया पूंजी कमा सकते हैं।

फरवरी में बोएं क्या

पहला सवाल बड़ा मार्के का है। फरवरी में आखिर बोएं क्या। फरवरी में बोने के लिए नकद फसलों की लंबी फेहरिस्त है। आप फरवरी में सब्जियां बो सकते हैं। कई किस्म की सब्जियां हैं जो इस मौसम में ही बोई जाएं तो बढ़िया मुनाफ होता है।

कौन सी सब्जियां

फरवरी में आप करेला, खीरा, ककड़ी, अरबी, गाजर, चुकंदर, प्याज, मटर, मूली, पालक, गोभी, फूलगोभी, बैंगन, लौकी, करेला, लौकी, मिर्च, टमाटर आदि बो सकते हैं। इनमें बहुत सारी सब्जियां ऐसी हैं जो 90 दिनों का वक्त लेती हैं लेकिन कुछेक सब्जियां ऐसी भी हैं जो मात्र 50 से 60 दिनों में तैयार हो जाती हैं।

खेत की तैयारी

मान लें कि आप अपने खेत में खीरा बोना चाहते हैं। खीरा बोने के पहले आपके खेत की कंडीशन कायदे की होनी चाहिए। पहली शर्त यह है कि जो खेत की मिट्टी होनी चाहिए, वह रेतीली दोमट होनी चाहिए। दोमट मिट्टी में भी शर्त यह है कि उसमें जैविक तत्वों की प्रचुर मात्रा हो और पानी की निकासी उम्दा स्तर की हो। 

ऐसे, किसी भी जमीन पर आप अगर खीरा उगाना चाहेंगे तो फेल कर जाएंगे। यह बहुत जरूरी है कि दोमट मिट्टी हो और पानी ठहरे नहीं, निकास होता रहे। वैज्ञानिक भाषा में बात करें तो मिट्टी की गुणवत्ता पीएच 6 या पीएच 7 होनी चाहिए।

जमीन कैसे बनाएं

यह बेहद जरूरी है कि खेत में कोई घास-पतवार नहीं हो। यह बिल्कुल साफ-सुथरा होना चाहिए। दोमट मिट्टी को भुभुरा बनाने के लिए पूरे खेत को तीन से चार बार जोत लेना जरूरी होता है। हल-बैल से जोत रहे हैं तो पांच बार। ट्रैक्टर से जोत रहे हैं तो कम से कम 3 या अधिकतम चार बार जोतें। 

खेत जोतने के बाद मिट्टी में गाय के गोबर को मिलाएं। गाय का गोबर मिलाने के बाद खेत की उर्वरा शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। आप अन्य खाद का इस्तेमाल न करें तो बेहतर। जब गोबर मिला दिया गया तो अब आप 2.5 मीटर चौड़े और 60 सेंटीमीटर की लंबाई का फासला रख कर नर्सरी तैयार कर लें।

बिजाई

बिजाई फरवरी माह में करना उचित होता है। बीजों की बिजाई के वक्त 2.5 मीटर चौड़े नर्सरी बेड पर दो-दो बीज बोयें और दोनों बीजों के बीच में कम से कम 60 सेंटीमीटर का फैसला जरूर रखें। 

बीज की गहराई कम से कम 3 सेंटीमीटर होनी चाहिए। 3 सेंटीमीटर गहराई में आप जब बीज डालते हैं तो उसे पक्षी निकाल नहीं सकेंगे। फिर उन्हें मुकम्मल रौशनी और हवा भी मिल सकेगी।

कैसे करें बिजाई

खीरे की खेती के लिए छोटी सुरंगी विधि का भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। इस विधि के तहत 2.5 मीटर चौड़े नर्सरी के बेड पर बिजाई होती है। बीजों को बेड के दोनों तरफ 45 सेंटीमीटर के फा.ले पर बोया जाता है। बिजाई के पहले 60 सेंटीमीटर लंबे डंडों को मिट्टी में गाड़ देना चाहिए। 

फिर पूरे खेत को प्लास्टिक शीट से कवर कर देना चाहिए। जब मौसम सही हो जाए तो प्लास्टिक को हटा देना चाहिए। माना जाता है कि खीरे के बीज को गड्ढे में ही बोना चाहिए। आप चाहें तो गोलाकार गड्ढे बना कर भी बीज डाल सकते हैं।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, एक एकड़ खेत में खीरे का एक किलोग्राम बीज काफी है। प्रति एकड़ एक किलोग्राम बीज इसका आदर्श फार्मूला है।

उपचार

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, बिजाई से पहले ही खीरे की फसल को कीड़ों और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए अनुकूल रासायनिक का छिड़काव करना चाहिए। बेहतर यह हो कि आप बीजों का 2 ग्राम कप्तान के साथ उपचार कर लें, फिर बिजाई करें।

खीरे की किस्में

  • पंजाब खीरा

यह 2018 में जारी की गई किस्म है। इसके फल हरे गहरे रंग के होते हैं। इनका टेस्ट कड़वा नहीं होता। औसतन इनका वजन 125 ग्राम का होता है। इसकी तुड़ाई आप फसल बोने के 60 दिनों के भीतर कर सकते हैं। फरवरी में अगर आप यह फसल बोते हैं तो माना जा सकता है कि प्रति एकड़ 370 क्विंटल खीरा आपको मिलेगा।

  • पंजाब नवीन खीरा

यह आज से 14 साल पुरानी किस्म है। इसका आकार बेलनाकार होता है। इस फसल में न तो कड़वापन होता है, न ही बीज होते हैं। यह 68 जिनों में पक जाने वाली फसल है। इसकी पैदावार 70 क्विंटल प्रति एकड़ ही होती है।

करेले की बुआई

करेले की बुआई दो तरीके से होती हैः बीज से और पौधे से। आपकी जिससे इच्छा हो, उस तरीके से बुआई कर लें। बाजार में बीज और पौधे, दोनों मौजूद हैं। 

करेले के दो से तीन बीज 2.5 से 5 मीटर की दूरी पर बोएं। बोने के पहले बीज को 24 घंटे तक पानी में जरूर भिगोना चाहिए ताकि अंकुरण जल्द हो। जो नदियों के किनारे का इलाका है, वहां करेले की बढ़िया खेती होती है। खेती के पहले जमीन को जोतना बेहद जरूरी है। 

इसके बाद दो से तीन बार जमीन पर कल्टीवेटर चलवा देना चाहिए। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, अंकुरण में भी तेजी आती है। उम्मीद है, हमारी दी हुई यह जानकारी आपकी आमदनी बढ़ाने में फायदेमंद साबित होगी।

किसान भाई इस विधि से करेले की खेती करने पर लाखों का मुनाफा उठा सकते हैं

किसान भाई इस विधि से करेले की खेती करने पर लाखों का मुनाफा उठा सकते हैं

करेला बागवानी के अंतर्गत आने वाली फसल है। विभिन्न राज्यों में करेले की खेती करने पर कृषकों को अनुदान भी दिया जाता है। करेले की विशेषता यह है, कि इसकी खेती चालू करने में खर्चा बहुत ही कम आता है। वहीं, मुनाफा काफी ज्यादा होता है। पूरे भारत में करेला की खेती की जाती है। करेले के अंदर भरपूर मात्रा में विटामिन्स और पोषक तत्व विघमान रहते हैं। इसी वजह से चिकित्सक करेले के रस का सेवन करने की सलाह देते हैं। करेले को लोग भुजिया और सब्जी, भरता के तौर पर उपयोग करते हैं। चिकित्सकों की माने तो करेले का जूस पीने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है। करेले में विटामिन ई, कैल्शियम, आयरन, विटामिन सी और विटामिन ए भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यही कारण है, कि इसकी मांग सालों रहती है। ऐसी स्थिति में किसान भाई आधुनिक विधि से इसका उत्पादन कर मोटी आमदनी कर सकते हैं।

करेला बागवानी के अंतर्गत आने वाली एक फसल है

करेला एक प्रकार की बागवानी फसल है। विभिन्न राज्यों में करेले का उत्पादन करने पर किसानों को अनुदान भी प्रदान किया जाता है। करेले की एक ऐसी विशेषता है, कि इसकी खेती चालू करने में बहुत कम खर्चा आता है। जबकि लाभ काफी ज्यादा होता है। यदि किसान भाई करेले की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो बलुई दोमट मृदा में ही इसकी बुवाई करें। क्योंकि बलुई दोमट मृदा करेले की फसल के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है। यदि आप चाहें तो नदी के किनारे भी करेले का उत्पादन कर सकते हैं। जलोढ़ मृदा में इसकी बेहतरीन पैदावार होती है।

करेले की खेती के लिए कितने डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है

करेले की फसल गर्म मौसम में तीव्रता के साथ विकास करती है। इसके लिए 20 डिग्री से 40 डिग्री तक का तापमान सबसे अच्छा माना गया है। अब ऐसी स्थिति में करेले की फसल को समुचित सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। हालाँकि, करेले की खेती वर्ष भर की जा सकती है। परंतु, वर्ष में तीन बार इसकी बुवाई की जाती है। यदि किसान भाई जनवरी से मार्च माह के मध्य इसकी बुवाई करते हैं, तो अप्रैल से करेले का उत्पादन शुरू हो जाएगा। यदि किसान भाई बारिश के मौसम में इसकी बुवाई करना चाहते हैं, तो जून से जुलाई माह इसके लिए अच्छा रहेगा। लेकिन, पहाड़ी क्षेत्रों के किसान मार्च से जून माह के मध्य करेले की बुवाई कर सकते हैं।

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बुवाई करने के 70 दिनों में फसल तोड़ने लायक तैयार हो जाती है

करेले की बुआई चालू करने से पूर्व खेत की बेहतर ढ़ंग से जुताई कर लें। उसके बाद खेत को एकसार कर लें। इसके बाद क्यारियां तैयार करके बीज की बुवाई करें। बीज सदैव 2 से 2 .5 सेमी गहराई में ही बोयें। विशेष बात यह है, कि बुवाई करने से पूर्व 24 घंटे तक बीज को पानी में भिगोकर रख दें। इससे बीज अतिशीघ्र अंकुरित होते हैं। जब करेले के पौधे बड़े हो जाएं, तब उसे लकड़ी अथवा बांस की मदद से उंचाई पर ले जाएं। इससे बेहतरीन उत्पादन हांसिल हो पाऐगा। इसी विधि को वर्टिकल फार्मिंग कहा जाता है। इस विधि से खेती करने पर बारिश होने की स्थिति में भी फसल की बर्बादी नहीं होती है। विशेष बात यह है, कि बुवाई करने के 70 दिनों के समयांतराल में फसल पककर तोड़ने हेतु तैयार हो जाती है।